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manisar
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"Whenever you can, share. You never know who all will be able to see far away standing upon your shoulders!"

I write mainly on topics related to science and technology.

Sometimes, I create tools and animation.


सहायिका ©

May 15, 2020

प्रस्तुतकर्ता - manisar



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परिप्रेक्ष्य

जैसा कि मैंने पहले कहा था, इस वैबसाइट के इस सेक्शन में दी हुई हर कहानी वेदान्त ग्रन्थों में से ली गयी हो, यह आवश्यक नहीं। यदि कहानी का मर्म वेदान्त के समीप है, और मुख्यतः यदि वह वेदांतिनों के लिए प्रेरणात्मक है, तो उस कहानी को यहाँ स्थान दिया गया है।

ऐसी ही एक कहानी है भास्कराचार्य की। यह कहानी मध्ययुगीन वास्तविक व्यक्तियों और घटनाओं से संबन्धित है (न कि प्रागैतिहासिक), जिसका अर्थ निकलता है कि कहानी में सत्य अधिक और कल्पना न्यून होनी चाहिए - जैसे एक वृत्तान्त, पर इतनी आदर्शोन्मुखी घटनाओं और व्यक्तियों से परिपूरित कहानी को पूर्णतः सत्य मानने में हिचकिचाहट होती है। इसे किंवदंती कहना अधिक उपयुक्त होगा। मेरी स्मरणशक्ति के अनुसार इस कहानी का यह रूप मैंने ओशो की किसी पुस्तक में पढ़ा था।

किन्तु जो भी हो, कहानी की सुन्दरता अप्रतिम है! और वेदान्त के अन्वेषियों के लिए प्रेरणात्मक भी।

भारतवर्ष में भास्कराचार्य के नाम के गणितज्ञ हुए हैं। यह कहानी उनसे, उनकी धर्मपत्नी और उनके द्वारा रचित एक ग्रंथ से सम्बन्धित है।

भास्कर अपनी ही धुन में रहने वाले व्यक्ति थे, जैसे बहुधा असामान्य मानसिक शक्ति-प्रदत्त लोग होते हैं। जब योग्य-वय हुए, और देखा गया कि भास्कर सांसारिकता से कोसों दूर हैं तो घर वालों ने विवाह के लिए दबाव डालना शुरू किया। अधिकतर तो यह होता है कि माँ-बाप कहना प्रारम्भ करते हैं, बेटे पहले-पहल 'न' से उत्तर देते हैं। क्योंकि कभी तो सच में विवाह में उत्सुक नहीं होते, और कभी लाज-शर्म आड़े आ जाती है। फिर कुछ दिन ये लुकाछुपी के खेल चलते हैं। और अंततोगत्वा विवाह हो जाता है।

किन्तु भास्कर तो ऐसे लुप्त थे अपने ही लोक में कि उन्होंने एक बार में ही हाँ कह दी। कौन गुल्ली-डंडा खेले, हाँ-ना, हाँ-ना करने में अपना मूल्यवान समय व्यर्थ करे। वैसे ही गणित के इतने गूढ़ और रोचक रहस्य मुँह बाये खड़े हैं, उनसे निपटें या घरवालों से! ठीक है - विवाह करना है कर दो, पर मेरा पीछा छोड़ो।


विवाह हो गया, घर में एक नवयौवना का आगमन हुआ। भास्कर का गणित के साथ अनुनय-विनय चलता रहा।

Indian Traditional Woman Painting

सुना है बहुत साल बीत गए। एक दिन रात के समय जब उनकी पत्नी एक दिये में तेल डालने लगीं तो दिया गिर गया, उसको उठाने झुकीं तो उसके प्रकाश में कदाचिद् पहली बार भास्कर ने उनको देखा और चौंक गए। पूछा - "अरे तू कौन है और यहाँ क्या कर रही है"। वे बोलीं - "मैं आपकी अर्द्धांगिनी, कुछ बरस पहले आप मुझे ब्याह कर ले आए थे, तब से मैं यहीं हूँ"। भास्कर उवाच - "ओह, तो तूने आज तक क्यों नहीं बताया? आज बता रही है जब मेरा यह ग्रन्थ पूरा होने को है। कब से सोच रहा था कि यह पूरा हो और मैं निकल जाऊँ सत्य की यात्रा पे, घर बार छोड़ के। सुबह जाने की सोच रहा था और तू मुझे अब बता रही है कि तू मेरी पत्नी है। मुझे तो असमञ्जस में डाल दिया, अब क्या करूँ? जैसा तू कहेगी वैसा करूँगा।"

वे बोलीं - "आपने मुझसे पूछा, मेरा सौभाग्य! मैं आपके रास्ते में आने वाली कभी नहीं हो सकती। आज तक नहीं हुई तो आगे कैसे हो जाऊँ। जो आपका प्रण है, जैसा आपका निश्चय है वैसा ही कीजिये, मेरे लिए इससे अधिक प्रसन्नता की बात और कोई नहीं हो सकती"। भास्कर ने वैसा ही किया। भास्कर से भास्कराचार्य बने, बहुत मान-सम्मान प्राप्त किया। भारत को गणित मे अग्रणी बनाने का श्रेय जितना भास्कराचार्य को जाता है, उतना ही उनकी अज्ञात धर्मपत्नी को भी।

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