आपने देश की ख़ातिर क़ुर्बान होने वाले शहीदों के कई किस्से सुने होंगे। लेकिन ऐसा शायद इतिहास में पहली बार हुआ होगा जब एक पूरे के पूरे प्रदेश ने देश के सुनहरे भविष्य के लिए अपनी क़ुर्बानी दे दी, अपना भविष्य मटियामेट कर लिया। Thank you, बंगाल!
विगत 7 सालों में मोदी और उनकी टीम ने वाक़ई कई काबिल-ए-तारीफ़ काम किए हैं। Infrastructure से ले के national security तक, sanitization से ले के digitalization तक, foreign policy से ले कर ease-of-business बेहतर बनाने तक। यदि आप पूर्वाग्रह और चिढ़ का चश्मा बिना लगाये देखेंगे तो वर्तमान सरकार के बहुत से कामों को अनदेखा करना आसान नहीं है। यकीनन बहुत से और काम भी हो सकते थे, और बहुत से काम और तरीकों से हो सकते थे। लेकिन हिंदुस्तान की कुल साक्षरता, जनसंख्या, बुद्धिमत्ता, रूढ़िवादिता, भावुकता और लोलुपता का स्तर देखते हुए अधिकतर काम जो हुए हैं, और जैसे भी हुए हैं, वह मेरे हिसाब से सराहनीय है।
मैंने तो मोदी के पहले की सरकारों की, केंद्र और राज्यों में, कहीं भी कुल मिला कर ऐसी नीयत और ऐसा performance नहीं देखे। निश्चित ही कुछ काम मनमोहन सिंह ने बहुत अच्छे किए, कुछ एक नरसिम्हाराव ने। लेकिन रिपोर्ट कार्ड में एक सब्जेक्ट में टॉप और बाकियों में फिसड्डी रहने वालों की बहुत तारीफ तो नहीं की जा सकती। बाकी सारी बातें एक तरफ रख के सिर्फ एक चीज़ - घोटाले - रोकने का काम करके ही वर्तमान सरकार काफी अच्छे नंबर प्राप्त कर लेती है।
तो निश्चित ही - गुड वर्क, मोदी & टीम!
लेकिन, किन्तु, परंतु... एक सब्जेक्ट ऐसा है जिसमें मोदी सरकार बेहद पीछे रह गयी, और वह भी PCM (Physics, Chemistry, Maths) जैसे सबसे कद्दावर सब्जेक्ट्स में से एक।
वह विषय है - धर्म-निरपेक्षता, और ग़ैर-रूढ़िवादिता। और इस विषय में मोदी सरकार के ग्राफ इतना अधोमुखी होता जा रहा था कि बंगाल को कदम उठाना ही पड़ा!
चाहे वोट-बैंक की मजबूरी हो, या RSS के आकाओं का दबाव, मोदी सरकार के द्वारा रूढ़ियों का इस क़दर पालन-पोषण अत्यंत निंदनीय रहा है। और वह भी एक धर्म-विशेष के अनुयायियों - हिंदुओं - की रूढ़ियों का।
कुछ याद करें?
- 2016: आयुष विभाग द्वारा योग के शिक्षकों में एक भी मुस्लिम को नहीं लिया जाना।
711 मुस्लिम आवेदकों में से आपको एक भी ठीक नहीं लगा!
...The reply said that the Ministry had received a total of 711 applications from Muslim Yoga trainers, for foreign assignments, but not a single one of them was even called for an interview, let alone selected to go abroad! On the other hand, some 26 trainers who were all Hindu...
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- 2014-2021: मोदी का स्वयं जब देखो तब किसी मंदिर, गुरद्वारे में पूजा-अर्चना करना, माथा टेकना। यदा-कदा चलता है भाईसाहब, लेकिन बार-बार लगातार भारतवर्ष जैसे विविध भूखंड के मुखिया का एक धर्म-विशेष के प्रति स्पष्ट झुकाव और लगाव का प्रदर्शन निराशाजनक है। कभी गंगा आरती कर रहे हैं, तो कभी राम-मंदिर का शिलान्यास। इस हद तक अगर कोई धार्मिक है और उसे अपने धर्म के कर्मकांड इतने प्रिय लगते हैं, तो ठीक है, वैसे कोई बात नहीं, लेकिन भारत के प्रधानमन्त्री जैसे भरी-भरकम पद के फिर वह योग्य नहीं।
यदि आपको मुश्किल लग रहा है समझना, तो एक बार कल्पना कर के देखिये कि भारत का अगला प्रधानमन्त्री हर हफ्ते, या हर महीने मस्जिदों के चक्कर लगा रहा है, दरगाहों पे चादर चढ़ा रहा है, या गिरजाघरों में मोमबत्तियाँ जला रहा है। कहीं चूँटी काट गयी क्या?
और यदि आप यह तर्क देंगे कि भारत तो ऐतिहासिक रूप से हिन्दू-राष्ट्र रहा है, या भारत हिन्दू-बहुल राष्ट्र है, इसलिए मंदिरों में लोटना चलता है, पर मस्जिदों में नहीं, तो आपसे अधिक मूढ़ और निर्मम कोई नहीं।
यदि 3000 साल पहले की बातें और क्रियाकलाप इतिहास में आते हैं, तो 300 साल पहले के भी। तो अगर 3000 साल पहले होने वाले यज्ञों को आप भारत की पहचान से जोड़ते हैं, तो 300 साल पहले होने वाले मुहर्रम को भी जोड़ना पड़ेगा। नहीं जोड़ना चाहते तो कुछ भी न जोड़िए, तीन-चार हज़ार साल से पहले तो यज्ञ भी नहीं होते थे भारत में। सब कुछ भूल जाइए, कोई दिक्कत नहीं। लेकिन यादृच्छिक रूप से किसी बात को इतिहास मान लेना और किसी को नहीं निपट मूर्खता है।
इसी तरह हिन्दू-बहुल होने वाली बात भी निराधार है। क्योंकि बहुलता के आधार पे ही चलेंगे तब तो बहुत कुछ बदल जाना चाहिए। हरियाणा में पुरुष बहुलता में हैं, तो वहाँ पुरुष-प्रधान नियम बनाने चाहिएँ। कश्मीर में मुस्लिम बहुलता में हैं, तो वहाँ मुस्लिम-प्रधान संविधान चलाना चाहिए। तमिलनाडु में तमिल-भाषी अधिकता में हैं, इसलिए वहाँ हिन्दी का राष्ट्र-भाषा का पद छीन लेना चाहिए। फिर तो किसी प्रकार के तर्कयुक्त, अर्थपूर्ण नियम-प्रचलनों की बात करना ही बेमानी है। बस बहुमत और बहुसंख्यक को खुश करने वाली व्यवस्था चलाते रखिए!
इसलिए केवल बहुलता को ही नहीं, common-sense और सामान्य-ज्ञान को भी निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल करना चाहिए। और common-sense यह कहता है इस बारे में कि लोगों को उनके धार्मिक-क्रियाकलापों का, मज़हबी रस्मो-परस्ती का पालन करने दीजिये। आप एक धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र के मुखिया के गौरव को बनाए रखिए और किसी धर्म-विशेष के प्रति, यदि आपको असामान्य रूप से लगाव है भी तो, कम से कम, ज़ाहिर न कीजिये। घर के कोने में, या एक-आध बार किसी मंदिर-वंदिर जा के जय गणेश बप्पा वगैरह गा लीजिये, वज़ू कर लीजिये, नमाज़ अदा कर लीजिये। लेकिन यह सब अगर बार-बार करने का मन करता है, तो फिर बेहतर है प्रधान-मंत्री का पद किसी और को दे दीजिये। हिंदुस्तान के मुखिया के पास इतनी फुर्सत भी होनी चाहिये क्या?
- 2014-2021: मोदी की पार्टी (बीजेपी) की राज्य सरकारों द्वारा किया जा रहे हास्यास्पद कारनामे - उदाहरणार्थ नामकरण संस्कार - इलाहाबाद अब प्रयाग है, गुड़गाँव, गुरुग्राम! क्या हमारे पास अभी इन सब कामों के लिए resources (साधन) हैं? सरकारी समय और संसाधन इन सब बातों में लगाने की फुर्सत अभी हमें होनी चाहिए?
ऐसे ही वृन्दावन, बरसाना आदि को मीट-फ्री और लिकर-फ्री करना।
मतलब इन जगहों पे अब आप अंडे भी नहीं खा सकते, कभी किसी दिन दोस्तों के साथ एक बीयर भी नहीं पी सकते। हाँ, टीवी serials का, फिल्मों का, संगीत का, क्रिकेट का नशा कर सकते हैं (क्योंकि ये सब तब थे ही नहीं जब शास्त्र लिखे गए, इसलिए इनके बारे में शास्त्रों में मनाही नहीं है)! इसी प्रकार घर में कछुआ-छाप, गुड-नाइट जला के मच्छरों को मार लीजिये कोई समस्या नहीं! मेरा कहना बस यह है कि अगर गलत है मांस खाना और शराब पीना तो पूरे भारत में बंद कर दीजिये, अन्यथा बस मंदिरों को अपने परिसीमन में बंद रखने दीजिये... पूरे वृन्दावन, बरसाना आदि में ऐसे तानाशाही नियम लगाना तो ठीक नहीं। जो पहले से वहाँ रह रहे हैं और कर्मकाण्डी बंद-दिमाग़ हिन्दू नहीं हैं, उनकी क्या ग़ल्ती।
ऐसे ही बीफ-बैन इत्यादि।
- 2017-21: आयुष विभाग द्वारा जारी किए गए एक के बाद एक हास्यास्पद सुझाव और निर्णय
"...In August 2017, a pamphlet published by AYUSH came under fire from health journalists, doctors and the general public for its rather bizarre and unscientific advice for pregnant mothers. The pamphlet titled Mother and Child Care through Yoga and Naturopathy asked pregnant women to stop eating meat, eggs, and even having sex, and also asked them to nurture spiritual and ‘pure’ thoughts..."
"... Medicines prescribed by AYUSH for diabetes, namely BGR-34 and IME-9 have both recorded major side effects, including increasing patient’s blood glucose to dangerously high levels..."
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आयुर्वेद के वैद्यों को सर्जरी की अनुमति
- 2021: होली और कुम्भ मेले के आयोजन की स्वीकृति! यह तो मेरे विचार से ताबूत की आखिरी कील वाली बात हुई। इतने विकट समय में (कोविड के दौरान) किसी भी सूरत-ए-हाल में कुम्भ जैसे आयोजन की स्वीकृति नहीं दी जानी चाहिए थी। इसमें कोई भी रॉकेट-साइन्स जैसी बात नहीं थी। परंतु हिन्दू धर्म के ठेकेदारों की खुशी और उनका आशीर्वाद शायद अक़्ल-ए-सलीम, कॉमन-सैन्स से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण थे! कोरोना तो वैसे भी बढ़ता, ऐसा नहीं है कि नहीं बढ़ता, लेकिन कुम्भ और होली ने निश्चित ही इसके फैलने में अच्छा-ख़ासा इजाफा किया।
तो ऐसे और भी उदाहरण मिल जाएँगे। बात केवल हिंदुओं को खुश करने और उनका वोट लेने की नहीं है। बात है उल्टा चलने की। विज्ञान और सामान्य-ज्ञान के विपरीत जाने की। बात है रूढ़िओं को तर्क से ऊपर स्थान देने की। यह प्रचलन बहुत ही भयप्रद है। बड़ी मुश्किलों से भारत बहुत सी कुरीतियों से आज़ाद हुआ है - जैसे सती-प्रथा, जौहर, बाल-विवाह आदि। अगर हम ध्यान नहीं देंगे, तो वापस इसी तरह की कुरीतियों में अनायास ही फँस जाएँगे। यहाँ पर हालाँकि मोदी ने जो तीन-तलाक़ को मिटाने की दिशा में काम किया है वह निश्चित ही सराहनीय है। परंतु वैसा साहस हिन्दू धर्म से जुड़ी बातों में नहीं देखने को मिला।
तो इसलिए बंगाल का बीजेपी को न जिताने का निर्णय बिल्कुल ही ठीक समय पर आया है। हालाँकि बीजेपी ने टीएमसी की गुंडागर्दी के बावजूद जितनी seats जीती हैं, वह बीजेपी की जीत ही है। लेकिन सरकार तो टीएमसी की ही बनेगी। और इसमें बंगाल का बेहद नुकसान है। कुल मिला के बंगाल के लिए बीजेपी की सरकार दीदी से कई गुना बेहतर साबित होती। वैसे ही बंगाल पूरे देश से काफी पीछे हो चुका है। और अब यहाँ से पाँच सालों के बाद तो पिछड़ेपन की गर्त में ही मिलेगा। लेकिन बीजेपी और मोदी को जो संदेश शायद मिला हो, वह पूरे भारत के लिए बहुत लाभकारी सिद्ध हो सकता है। और वह संदेश, अगर बीजेपी के आँख-नाक-कान बंद नहीं हैं तो यह है: केवल हिन्दू वोट बैंक के सहारे आप एक के बाद एक चुनाव नहीं जीतते जा सकते। हिंदुओं में भी बहुत से समझधार हैं, रूढ़ियों के विरोध में हैं, और कुरीतियों से दूर जाना चाहते हैं। बहुत से हिन्दू तर्क की बात समझते हैं, और 'बस शास्त्रों में लिखा है, इसलिए सच है' इस से आगे निकल चुके हैं। अब वक़्त आ गया है कि बीजेपी के आका भी अपने दिमाग़ की खिड़कियाँ थोड़ी खोलें। यह उनके और भारतवर्ष दोनों के लिए बहुत ही फायदेमंद बात होगी.
इसलिए, फिर से... थैंक यू बंगाल! तुम याद आओगे।