Aug. 7, 2020
चेतावनी: अगर आप तर्क, logic आदि में रुचि नहीं रखते, या फिर हर बात को जज़्बात के चश्मे से देखते हैं, तो आगे पढ़ने का कोई फायदा नहीं, नाहक अपना खून जलायेंगे, या फिर अपना मूल्यवान समय व्यर्थ करेंगे। फिर भी… बेशक, आपकी मर्ज़ी!
आजकल राम-जन्मभूमि-पूजन का हल्ला मचा हुआ है। काफी लोग अपने अपने जज़्बाती खयालात ज़ाहिर कर रहें हैं। emotional हैं, sentimental हैं, बहुत भावुक हैं – इसमें ऐसी कोई दिक्कत वाली बात नहीं है। लेकिन जज़्बात की इंतहा तब हो जाती है, जब यहाँ तक कह जाते हैं कि “भारत के मुसलमानों के लिए भी तो खुशी की बात है... राम आखिर उनके भी तो पूर्वज हैं!”
इस लेख का उद्देश्य केवल इस एक वाक्य में छिपी हुई मासूम मूर्खता को प्रकट करना है। बाकी आप हिन्दू हों या मुसलमान, खुश हो रहें हों या दुखी… होते रहें।
अव्वल तो यह कि रामचन्द्रजी का कालखण्ड इतना पुराना है कि उनके होने को पूर्णतः ऐतिहासिक जामा नहीं पहनाया जा सकता। मतलब कि जैसे कि हम महाराणा प्रताप, अकबर वगैरह के बारे में कह सकते हैं कि वे फलाने कालखण्ड में ढिमाके स्थान पर हुए थे, रहे थे, ठीक उतनी ही दृढ़ता के साथ रामचन्द्रजी के बारे में नहीं कह सकते। गुस्से में आग-बबूले हो जाने से पहले उपरोक्त वाक्य को एक बार पुनः पढ़ लीजिये। मैंने यह बिलकुल नहीं कहा कि राम जी कभी थे ही नहीं, इत्यादि। वैसे यह हो भी सकता है कि वे न हुए हों, या हुए हों लेकिन जैसा चित्र उनका आज हमारे सामने है, उस से वे पूर्णतया भिन्न रहे हों, लेकिन यह मेरे कहने का बिल्कुल भी मतलब नहीं है। मैं यह कह रहा हूँ कि रामचन्द्रजी की अवधारणा में 100 प्रतिशत ऐतिहासिकता नहीं, बल्कि काफी प्रागैतिहासिकता व कुछ पौराणिकता भी है। अब ऐतिहासिक, प्रागैतिहासिक व पौराणिक में क्या भिन्नता है, इस पर फिर कभी विचार करेंगे, अभी के लिए मान लेते हैं कि रामचन्द्रजी एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे। अभी तक कोई दिक्कत वाली बात नहीं हैं।
अब अगर रामचन्द्र नाम के कोई सज्जन भारतवर्ष में हुए हैं, तो निश्चित ही वे भारत में जन्म लेने वाले हर व्यक्ति के पूर्वज हुए। यह इतनी ही स्पष्ट बात है जैसे दो और दो चार। लेकिन जो बात मेरी समझ से बाहर है वह यह है कि भारतवासियों के करोड़ों-अरबों पूर्वजों में से यदि आप किसी एक से भावुक रूप से जुड़ गए हैं, दीवाने हो गए हैं, तो, यह मानते हुए भी कि एक भारतवासी के रूप में वह व्यक्ति मेरा भी पूर्वज हुआ, मुझे भी क्यों उस से लगाव हो जाना चाहिए?
अगर आप किन्हीं राम, रहीम, आसाराम, सत्य साईं बाबा आदि (जो सब भारत में हुए हैं, अर्थात् हमारे पूर्वज हैं), के जन्मदिन पर नाचें-गायें, उनके जन्मस्थान पर जा के नाक रगड़ें तो क्या यह अपेक्षा करना उचित है कि मैं भी ऐसा करूँ? चलिये आप इतनी अधिक अपेक्षा न भी करें, लेकिन कोई कखग जी अगर मेरे और आपके पूर्वज हैं, और आपका उनसे भावनात्मक जुड़ाव है, तो मुझे भी उनसे किसी भी तरह का दिली लगाव, रत्ती भर भी attachment क्यों हो जाना चाहिए?
तो, अगर मैं मुसलमान हूँ, या हिन्दू हूँ, या कुछ भी हूँ, राम-जन्मभूमि-पूजन की वजह से खुश हो जाऊँ, इसलिए कि वे मेरे पूर्वज हैं और साथ में आप खुश हैं, या 50-60 हज़ार-लाख-करोंड़ लोग खुश हो रहें हैं, यह बात, यह उम्मीद बेबुनियाद है।
हिंदुस्तान में कमर जलालाबादी नाम के एक व्यक्ति हुए हैं, करीब सौ साल पहले। शायर थे। दरअसल मुझे उनसे मोहब्बत है, उनके जन्मदिन पर में नाचता-गाता हूँ, क्या आप इसमें मेरा साथ देंगे? आखिर वे आपके भी तो पूर्वज हैं! और लाखों-लाख लोग हिंदुस्तान में ऐसे हुए हैं जिनको कोई न कोई पसंद करने वाला है... रावण से लेकर औरंगज़ेब तक, आप सब के जन्मदिन पर मुबारकें देंगे? लेंगे? सबकी जन्मभूमि-पूजन पर खुश होंगे?
अब यहाँ एक बात और स्पष्ट कर देना ज़रूरी है – हो सकता है कोई मुसलमान सच में खुश हो रहा हो इस अवसर पर, आनन्दित हो रहा हो, रोमांचित हो रहा हो। इसमें भी कोई गलत या हैरान होने की बात नहीं। उसका लगाव है, वह खुश हो रहा है। गलत बात यह अपेक्षा, उम्मीद करना है कि वह खुश हो।
अब रामचन्द्रजी वाले एक और तरह से आपसे खुश होने की अपेक्षा रख सकते हैं। मान लीजिये कोई ऐसा इंसान है दुनिया में जिसके साथ कुछ ग़लत हुआ हो, कभी पहले, लेकिन आज वह दिन आया है जब उस गलत की कुछ हद तक भरपाई हो रही है। तो, बावजूद इसके कि मुझे इस इंसान से ज़रा सा भी मतलब न हो, लेकिन क्योंकि चूँकि न्याय हो रहा है उसके साथ तो इस बात से मेरा खुश होना बनता है। मेरा, आपका, हिन्दू-मुसलमान, सब का बनता है। यहाँ तक बात बिल्कुल नैतिक और स्वाभाविक है। तो फिर, ऐसे ही तो रामचन्द्रजी के साथ ग़लत हुआ, उनका मंदिर तोड़ा गया, तो फिर अब जब उस अन्याय की क्षतिपूर्ति की जा रही है, तो मुझे तो खुश होना चाहिए न? चाहे मुझे रामचन्द्रजी से लेना एक न देना दो हो, चाहे मैं कट्टर मुसलमान या ईसाई होऊँ फिर भी खुश होना चाहिए न? ऐसी अपेक्षा कोई करे तो क्या ग़लत है?
इसमें ग़लत क्या है देखिये। दुनिया में किसी के साथ न्याय हो रहा हो, या किसी के साथ पहले हो चुके अन्याय की क्षतिपूर्ति हो रही हो तो बिल्कुल मुझे खुश होना चाहिए। लेकिन सवाल यहाँ पर यह है कि 16वीं शताब्दी में अगर एक भवन तोड़ा गया जिसमें रामचन्द्रजी की मूर्ति थी, तो इसमें रामचन्द्रजी, जो इस घटना के हजारों साल पहले हो के मर-खप गए, जिनके बच्चों के बच्चों के बच्चे भी मर-खप गए, के साथ क्या ग़लत, क्या अन्याय हुआ? और अब अगर वह मंदिर फिर बन रहा है तो उसमें रामचन्द्रजी के साथ क्या न्याय हो रहा है? ज़रा भी नहीं। इसलिए यह बात बेमानी है। हाँ काफी लोग एक मंदिर से, एक मूर्ति से अत्यधिक भावनात्मक रूप से जुड़े हुए थे आज से चार-पाँच सौ साल पहले, उनके साथ ज़रूर ग़लत हुआ था, लेकिन अब इतने समय के बाद वहाँ चाहे दस क्या, हज़ार गुना आलीशान मंदिर बनवा दीजिये, उस नुकसान की रत्ती भर भी भरपाई नहीं हो सकती।
इसलिए मुझे क्या किसी को भी रामजन्मभूमि-पूजन से ज़रा सा भी खुश हो जाना चाहिए सिर्फ इसलिए के वे ‘मेरे भी तो पूर्वज हैं’ सरासर ग़लत उम्मीद है। खुश क्या बल्कि मेरे देखे दुखी होने की ज़रूर बात है कि एक धर्म-निरपेक्ष देश का सरकारी तंत्र, सरकारी पैसा, सरकारी समय इतने बड़े पैमाने पर एक सम्प्रदाय विशेष के कर्मकाण्डों में लगाया जाये। हिंदुओं, और उनमें से भी केवल साकारवादियों, उनमें से भी केवल वैष्णवों, उनमें से भी केवल राम-प्रेमियों, उनमें से भी केवल मूर्ति-पूजकों के प्रयास, पैसों और समय से मंदिर बने (अब उच्चतम न्यायालय का निर्णय आने के बाद) तो उसमें कुछ ग़लत नहीं है। लेकिन सरकार की इतनी लिप्तता, आम जनता का इतना भावावेश और भावनाओं का इतना अपव्यय... यह अच्छी बात नहीं है।
Image: PTI