"Whenever you can, share. You never know who all will be able to see far away standing upon your shoulders!"
I write mainly on topics related to science and technology.
Sometimes, I create tools and animation.
"इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना...
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना"
ग़ालिब के ये लफ्ज़ जब जज़्बात की शक़्ल इख्तियार कर आपके वजूद को निगल जाएँ, तो पेशकश कुछ इस तरह से होती है।
रचना कालखंड - 2001-02
ये क्या हो गया, क्यों हँसी आ गयी
सोज़े ग़म खो गया, बेखुदी छा गयी
सो गया दर्दे दिल बेखबर हो के यूँ
जैसे अब क़यामत आखिरी आ गयी
फ़र्क ग़म और खुशी का जाने खो गया कहाँ
आज है खुशी पे ग़म, खुशी ग़म पे छा गयी
साथ अब हैं मेरे मेरी तनहाइयाँ
इन्हीं तनहाइयों में ज़िंदगी समा गयी
यादें कल की मिटीं, चिंता कल की हटी
एक धुंध बेफिक्री की हर तरफ छा गयी
न हूँ बेक़रार मैं, न कोई इंतज़ार है
वो है चैन-ओ-सुकूँ कि मौज ही आ गयी
मेरी इब्तिदा नहीं, कोई इंतहाँ नहीं
पैदा अभी हुआ, अभी मौत आ गयी
जोशे ज़िंदगी नहीं, होशे बंदगी नहीं
आज मेरे लिए ख़त्म दुनिया हुई
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