March 15, 2008
लेखक - manisar
सन् 2008 के दौरान कॉलेज के second या third year में एक वक़्त ऐसा आया जब लगा कि कुछ ख़ास करने को, समझने को, पाने को है नहीं फिलहाल. लेकिन और सोचा तो सवाल उठा कि आखिर फिर ये बेचैनी, बेखुदी, बदहाली किसलिए?
उस दौरान जो मन में उधेड़बुन चली, उन जज़्बात को बयान करने के लिए तुकबंदी का सहारा लिया तो इस कविता का जन्म हुआ।
रचना कालखंड - 2007-08
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चंद बिखरे मोती
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