"Whenever you can, share. You never know who all will be able to see far away standing upon your shoulders!"
I write mainly on topics related to science and technology.
Sometimes, I create tools and animation.
"बहुत दिनों के बाद आज फूलों के कोपल फूटे हैं" - ऐसा कब लगता है मुझे? जब - "बहुत दिनों के बाद आज फिर तनहाई है और मैं हूँ" !
अंतर्मुखी होने की शायद कोई सीमा नहीं होती!
रचना कालखंड - 2006-07
बहुत दिनों के बाद आज फिर घटा उठी है सावन की
बहुत दिनों के बाद आज फिर लहर उठी है सागर की
बहुत दिनों के बाद आज फिर डूब के हमने जाना है
साहिल पे ही बैठे रहने से अच्छा मर जाना है
बहुत दिनों के बाद आज फूलों के कोपल फूटे हैं
झूठे साथी सब छूटे हैं, बेदम सपने सब टूटे हैं
बहुत दिनों के बाद आज फिर तनहाई है और मैं हूँ
सूनी राहें सूनी महफिल सूनी दुनिया है और मैं हूँ
बहुत दिनों के बाद आज फिर भभक उठी है सीने में
वो लगन लगी वो अगन जगी फिर मज़ा आ गया जीने में
खुद को फिर से पहचाना जब ये राज़ दुबारा जाना है
पाने का मतलब खोना है और खोना सब कुछ पाना है
बहुत दिनों के बाद आज फिर याद बहुत तुम आते हो
सबसे आँखें फेरी हैं पर आँखों में तुम रह जाते हो
हूँ धूल तुम्हारे कदमों की ये आखिर मैंने जाना है
जिस राह से गुज़रो तुम मुझको उस राह पे ही बिछ जाना है
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